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प्रसव के बाद होते हैं मानसिक और मनोवैज्ञानिक बदलाव, करीब 80 फीसद महिलाओं में दिखते हैं अवसाद के लक्षण

मां बनने जैसी सुखद नियामत के साथ भी कई शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक समस्याएं जुड़ी हुई हैं। पोस्टपार्टम डिप्रेशन यानी प्रसव उपरांत होने वाला अवसाद भी ऐसी ही एक परेशानी है। कई बार मां बन जाने की नई भूमिका में भय, उदासी, चिड़चिड़ापन और सबसे अलग-थलग पड़ जाने की सोच यूं घेरने लगती है कि आत्महत्या के कगार पर ले जाने वाली स्थितियां आ जाती हैं। अपनों के सहयोग और संबल के अभाव में कई महिलाएं ऐसा अतिवादी कदम उठा भी लेती हैं।

दरअसल मातृत्व के महिमामंडन और दायित्वबोध के भाव को लेकर बातें होती रहती हैं, पर नई माताओं की मानसिक और मनोवैज्ञानिक तकलीफों का जिक्र कम ही होता है। शारीरिक बदलावों को समझने पर भी ध्यान दिया जाता है। इनसे उबरने में लगने वाले समय के प्रति भी परिवारजन जागरूक होते हैं, लेकिन मन के मोर्चे पर पैदा हुई इस नई भूमिका से जुड़ी बातें कम ही समझी जाती हैं। तकलीफदेह है कि ऐसे तमाम पहलुओं पर न तो कोई संवाद होता है और न ही संबल दिया जाता है।

नतीजतन इस सुखद भूमिका के पहले पड़ाव पर कई महिलाओं को अकेलापन और अवसाद घेर लेता है। हाल में उच्च शिक्षित और महत्वाकांक्षी युवतियों में मां बनने के बाद आए ठहराव के चलते पोस्टपार्टम डिप्रेशन के आंकड़े बढ़े हैं। उनके मन में नई जिम्मेदारी की जद्दोजहद को लेकर कई तरह की चिंताएं होती हैं। साथ ही जिंदगी में सामंजस्य बनाने, कार्यक्षेत्र में पीछे छूट जाने की असहजता और मां की भूमिका में खरा न उतर पाने की फिक्र भी प्रसव उपरांत अवसाद के आंकड़ों में इजाफा कर रही है।

कुछ समय पहले अमेरिका की स्टार टेनिस खिलाड़ी सेरेना विलियम्स ने कहा था कि वे अपनी बेटी के लिए अच्छी मां साबित न हो पाने के डर में जी रही हैं। ऐसे में समझना मुश्किल नहीं कि एक आम कामकाजी स्त्री के हिस्से कितनी दुविधाएं हो सकती हैं। अधिकतर लोगों को तो इस बात का इल्म ही नहीं है कि प्रसव के बाद अवसाद जैसी समस्या भी हो सकती है। जबकि विशेषज्ञों का मानना है कि कम से कम 80 प्रतिशत महिलाओं में प्रसव के बाद अवसाद के लक्षण दिखाई देते हैं। ऐसी निराशा के भंवर में फंसी महिलाओं की शारीरिक सेहत की देखभाल भी सही ढंग से नहीं हो पाती।

ऐसे में उनकी यह जज्बाती जद्दोजहद समझी जानी जरूरी है। अपनों का सहयोग और संबल ही इन स्थितियों से जूझने में मददगार बन सकता है। मौजूदा दौर में यह समझना आवश्यक हो गया है कि कार्य क्षेत्र चाहे जो हो, करियर में आगे बढ़ने और अपने सपनों को पूरा करने के लिए महिलाओं को एक सुदृढ़ सपोर्ट सिस्टम की दरकार है। इसीलिए जरूरी है कि जीवन के सबसे सुखद अनुभव को जीते हुए महिलाओं को सहयोगी परिवेश मिले।

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