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शिक्षा के साथ शिष्टाचार का समावेश जरूरी – शुभम दुबे

 

बलौदाबाजार ! वर्तमान परिवेश में तेजी से दौड़ती भागती दुनिया में हम शिष्टाचार भूलते जा रहे हैं। अशिष्टता ही अनैतिकता का कारण है। इस बात को समझना होगा।यदि हम इसको समझ लेंगे तो जीवन के हर मोड़ पर नैतिक रूप से खड़े हो सकेंगे। अशिष्टता ही नैतिकता का सबसे बड़ा शत्रु है।


आधुनिकता की चकाचौंध में हमें अपनी संस्कृति, सभ्यता व संस्कारों को दरकिनार नहीं करना चाहिए। आज के समय में हम शिष्टाचार, नैतिकता को भूलते जा रहे हैं। शिष्टाचार व नैतिकता हमारे जीवन में बहुत अहम चीजें हैं। किसी भी विषय को ले लें, हम युवा पीढ़ी पर पूरा दोष डाल कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। सवाल यह नहीं कि आज की युवा पीढ़ी में नैतिकता व शिष्टाचार की कमी हो रही है। सवाल यह भी है कि क्या सिर्फ युवा पीढ़ी पर दोषारोपण से हमारी जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है। क्या हम युवा पीढ़ी के लिए अपना कर्तव्य निष्ठा से निभा रहे हैं। क्या सारी गलती युवा पीढ़ी की ही है। मुझे नहीं लगता कि आज की युवा पीढ़ी सौ प्रतिशत गलत है। आज उनमें संस्कारों की कमी अगर हो रही है तो उसकी वजह सिर्फ और सिर्फ हम ही हैं। क्यों हम उनमें संस्कार नैतिकता शिष्टाचार नहीं भर पा रहे हैं। यह एक चिंतन का विषय है। बच्चों का अनैतिक होना भी हमारी कमजोरी है।
आज समाज में नैतिकता की कमी होती जा रही है। एक समय था जब बच्चे बड़े बुजुर्गो के पाव छू कर प्रणाम करते थे व आशीर्वाद लेते थे। बदलते समाज से हमारी कार्य करने की गति ही नहीं बढ़ी है, बल्कि इसके साथ नई पीढ़ी में नैतिकता व शिष्टाचार की कमी होती जा रही है। इसका मूल कारण यही है कि आजकल के बच्चे स्वयं को मिली उपलब्धियों की कद्र न कर उसका दुरुपयोग कर रहे हैं। आज हम संस्कार व शिष्टाचार की बातें तो करते है किंतु इसे जीवन में आत्मसाध करना भूल चुके हैं। माता-पिता भी कुछ हद तक इसके लिए जिम्मेदार हैं। माता और पिता को बच्चे द्वारा गलत मांग करने पर नैतिकता व शिष्टाचार का पाठ पढ़ाना आवश्यक है ।
आधुनिक दौर में हम पूरी तरह से फार्मल होते जा रहे हैं। शिक्षण संस्थाओं में बच्चों को बताया जाना चाहिए कि हमारे जीवन में शिष्टाचार का क्या महत्व है। यह बताना होगा कि अशिष्टता ही अनैतिकता का कारण है। पहले के दौर से लेकर अब तक के दौर तक तमाम बदलाव हुए हैं। इस दौर में आदमी का व्यवहार भी बदला है। बदले व्यवहार के बीच सामंजस्य बनाए रखना भी बेहद जरूरी है। जहां हम अपना शिष्टाचार भूले तो अनैतिकता के दायरे में आ जाएंगे और नैतिक मूल्य के अभाव से भरा जीवन किस काम का। इसीलिए शिक्षा के साथ शिष्टाचार का समावेश जरूरी है।
अशिष्टता ही अनैतिकता का कारण है। यह बात समझनी होगी। आज के परिवेश में शिष्टाचार का अभाव हमें अपने नैतिक मूल्यों व परिधियों से दूर ले जा रहा है। इसको रोकना होगा। जहां हम अपने शिष्टाचार को भूले नैतिकता का पूरी तरह से अभाव हो जाएगा। बातचीत हो या सामान्य व्यवहार हमें शिष्ट होना होगा क्योंकि जैसे ही अशिष्टता आई तो अनैतिकता का जन्म हो जाएगा। जब हम अनैतिक होंगे तो समाज को भी इसी से भरेंगे। समाज व्यक्ति से बनता है। इसलिए व्यक्ति का शिष्टाचार समाज को शिष्ट बनाता है, इसको समझने की नितांत आवश्यकता है।
शिष्टता ही नैतिकता का द्योतक है। घर से लेकर बाहर तक हमें इसका अनुशरण करना चाहिए। अशिष्टता अनैतिकता का कारण है क्योंकि जब हम किसी से अशिष्ट तरीके से बात करते हैं तो अपनी नैतिकता खो देते हैं।
आज शिष्टाचार में जो कमी नजर आने लगी है उसका एक कारण वर्तमान शिक्षा प्रणाली भी है जिसमे सबसे बड़ा दोष यह है कि वह बच्चों के व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक नहीं है। शिष्टाचार एवं नैतिकता किसे कहा जाता है यह कभी सिखाया ही नहीं जाता। बल्कि गणित, विज्ञान, अंग्रेजी आदि विषयों पर जोर दिया जाता है, जिससे बच्चे पढ़ना तो सीख रहे हैं, लेकिन संस्कार, नैतिकता व शिष्टाचार किसे कहते हैं उससे अनभिज्ञ हैं। यहाँ समझना होगा कि बौद्धिक विकास के साथ साथ बच्चों का व्यक्तित्व विकास भी आवश्यक है । जैसे हर सिक्के के दो पहलु होते हैं। वैसे ही हर चीज का अच्छा और बुरा दोनों पक्ष होता हैं। यह स्वयं पर निर्भर है कि कौन से पहलु का चुनाव करना हैं। अच्छे पक्ष का चुनाव हमें ऊंचाइयों तक पहुंचा देता है वहीं गलत पहलु कहीं का नहीं छोड़ता। यही आज हो रहा है। आज की पीढ़ी नैतिकता व शिष्टाचार को भूल रही है। नैतिकता का न होना ही अशिष्टता का मुख्य कारण है। नैतिकता हमें हमारे परिवार व समाज से मिलती है। समाज हमारा उत्थान करने में सहायक होता है। शिक्षकों व अभिभावकों का नैतिक कर्तव्य है कि युवा पीढ़ी को नैतिक मूल्यों और शिष्टाचार के प्रति जागरूक करें।

✒️ सुरेन्द्र बघेल , ब्योरो चीफ रायगढ़

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