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षडयंत्र, चुनाव या नवाज शरीफ… पाकिस्तान के जुडिशियल सिस्टम में क्यों मचा है कोहराम?

पाकिस्तान यानी एक ऐसा देश, जहां आजादी के बाद से ही किसी न किसी गलत वजह के कारण कोहराम मचता ही रहता है. कभी लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई पाकिस्तान की सरकार को हटाकर वहां की सत्ता पर सेना कब्जा कर लेती है तो कभी उसी के पाले हुए आतंकवादी उसकी नाक में दम कर देते हैं. कभी महंगाई की मारी जनता के बीच कोहराम मच जाता है तो कभी खाने-पीने के सामान की कमी के कारण.

एक बार फिर पाकिस्तान में कोहराम मचा हुआ है और इसका कारण है वहां का जुडिशियल सिस्टम. आइए जान लेते हैं चुनाव के बेच पाकिस्तानी जुडिशियल सिस्टम में मचे इस कोहराम की वजह क्या है?

एक के बाद एक, दो-दो जजों ने दे दिया इस्तीफा

राजनीतिक और आर्थिक मुद्दे पर संकट संकटों का सामना कर रहा पाकिस्तान दरअसल एक नए संकट से घिरता नजर आ रहा है. यह संकट खड़ा हुआ है पाकिस्तान के जुडिशियल सिस्टम में और कारण बना है एक-एक कर दो जजों का इस्तीफा. पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों ने सिर्फ दो दिनों के भीतर अपने-अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है. पहले इस्तीफे पर तो किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया. पर जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस इजाजुल अहसान ने भी त्याग पत्र दिया तो पाकिस्तान समेत पूरी दुनिया में इसकी चर्चा शुरू हो गई. इन्हीं जस्टिस अहसान ने पूर्व पीएम नवाज शरीफ पर चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाया था और अब जब नवाज शरीफ से प्रतिबंध हटा लिया गया है और वे मजबूत दावेदार हैं तो यह इस्तीफा मायने रखता है. अहसान वरिष्ठ जज हैं और वे देश के अगले मुख्य न्यायाधीश होने वाले थे.

एक दिन पहले ही न्यायाधीश ने दिया था त्यागपत्र

जस्टिस इजाजुल अहसान के इस्तीफा देने से एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के ही न्यायाधीश जस्टिस मजहर अली अकबर नकवी भी त्यागपत्र दे चुके थे. इससे दुनिया भर को लगा कि पाकिस्तान के जुडिशियल सिस्टम में कहीं न कहीं कोई भूचाल आया हुआ है. यह सच भी है.

असल में पाकिस्तान के गठन के बाद से लगातार वहां की न्यायपालिका कठघरे में रही है. वह न्याय नहीं कई बार अन्याय करती हुई भी दिखी है.कई बार राजनीति से टकराती हुई दिखी है. पाकिस्तानी मुस्लिम लीग-नवाज की सूचना सचिव मरियम ने इन दोनों इस्तीफों पर बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि इस्तीफा देने वाले दोनों जज बीते कई सालों से पाकिस्तान की अवाम के साथ अन्याय किया है.

भ्रष्टाचार की जांच से जुड़ा है पूरा मामला

वास्तव में यह पूरा मामला पाकिस्तान के जुडिशियल सिस्टम में भ्रष्टाचार और उसकी जांच से जुड़ा हुआ है. सबसे पहले इस्तीफा देने वाले जस्टिस मजहर अली अकबर नकवी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए थे. उनके खिलाफ जांच भी हो रही है. पाकिस्तान की जुडिशियल काउंसिल में अपने खिलाफ प्रोसीडिंग के कारण जस्टिस मजहर अली अकबर नकवी ने पद छोड़ दिया. इसके बाद जस्टिस इजाजुल अहसान ने जुडिशियल काउंसिल में जस्टिस मजहर अली अकबर नकवी के खिलाफ दायर शिकायतों और काउंसिल की पूरी प्रोसीडिंग के तौर-तरीके पर आपत्ति जताई थी.

नोटिस वापस लेने की मांग की थी

यही नहीं, जस्टिस इजाजुल अहसान ने यह भी मांग की थी कि जस्टिस नकवी को पिछले साल 22 नवंबर को जारी किया गया एक कारण बताओ नोटिस वापस लिया जाए. जस्टिस इजाजुल अहसान ने बाकायदा चार पेज में अपने विचार व्यक्त किए थे और इसमें यह भी बताया था कि वह जस्टिस नकवी को कारण बताओ नोटिस जारी करने के फैसले के खिलाफ थे. उन्होंने अपने इस विचार का कारण भी बताया था.

बिना चर्चा के ही नोटिस जारी करने का आरोप

जस्टिस इजाजुल अहसान ने कहा था कि जुडिशियल काउंसिल ने बिना किसी चर्चा या विचार विमर्श के ही जस्टिस नकवी को नोटिस जारी कर दिया, जो कि नियमत: सही नहीं है. उनका कहना था कि ऐसी प्रोसीडिंग से यह संदेह पैदा होता है कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है. इसलिए इस पूरी जांच प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े होते हैं. उनका कहना था कि जस्टिम नकवी पर गैर जिम्मेदाराना व्यवहार का जो भी आरोप लगा है, उसकी जांच में सही प्रक्रिया का पालन किया जाए.

ऐसा नहीं होने पर जस्टिम नकवी के इस्तीफे के बाद उन्होंने भी अपना इस्तीफा पाकिस्तान के राष्ट्रपति डॉ. आरिफ अलवी को सौंप दिया. त्यागपत्र देते हुए जस्टिस इजाजुल अहसान ने कहा कि अब उनके लिए इस पद पर बने रहना पॉसिबल नहीं है. जस्टिस अहसान के ऐसा करते ही पूरे पाकिस्तानी जुडिशियल सिस्टम में कोहराम मच गया.

पहले भी विवादों में रही है पाकिस्तानी न्यायपालिका

18 मार्च 1978 को लाहौर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मुश्ताक हुसैन ने पीएम रहे जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी की सजा सुना दी. उस समय इसे जुड़ीशियल किलिंग कहा गया था. सजा सुनाने के तुरंत बाद जज दो साल की छुट्टी पर देश से बाहर चले गए थे. साल 2017 में पाकिस्तानी पीएम रहे नवाज शरीफ को भी अदालत ने प्रधानमंत्री पद और चुनाव के लिए अयोग्य ठहरा दिया. उन पर भ्रष्टाचार के आरोप थे. जिस जज आसिफ सईद ने नवाज शरीफ को अयोग्य ठहराया उसे बाद में पाकिस्तान का चीफ जस्टिस बना दिया गया. आज फिर नवाज शरीफ चुनाव मैदान में हैं और न्यायपालिका ने ही उनसे प्रतिबंध हटाया है.

एक और पाकिस्तानी चीफ जस्टिस चौधरी के भी कई कारनामे चर्चा में रहे हैं. उन्होंने ही गिलानी को अपदस्थ कर दिया था. तब गिलानी पीएम थे. उन पर अदालत की तौहीन का मामला बनाया गया था. परवेज मुशर्रफ ने चौधरी को इस्तीफा देने को कहा और वे नहीं माने तो हाउस अरेस्ट कर दिया गया. तब इनकी बहाली के लिए पाकिस्तान के वकीलों ने आंदोलन चलाया और फिर सरकार ने उन्हें बहाल किया. चौधरी को पाकिस्तान में सुओ मोटो जज के नाम से बदनाम थे.

ये घटनाएं इस बात का प्रमाण है कि पाकिस्तानी न्यायपालिका और राजनीति का एक गठजोड़ है, जो एक-दूसरे के खिलाफ समय-समय पर इस्तेमाल करते-होते आए हैं. वर्तमान इस्तीफों के पीछे भी कहीं न कहीं राजनीतिक कारण ही हैं.

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