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कम्युनिस्टों का रुदन, दलित बहनों की मुस्लिम युवकों द्वारा बलात्कार एवं निर्मम हत्या

कम्युनिस्टों का रुदन, दलित बहनों की मुस्लिम युवकों द्वारा बलात्कार एवं निर्मम हत्या

 

 

लखीमपुरखीरी: उत्तरप्रदेश के लखीमपुरखीरी से गुरुवार को दो दलित बहनों के साथ मुस्लिम समुदाय के युवकों द्वारा बलात्कार एवं उनकी निर्मम हत्या की खबर ना केवल अंतर्मन को झकझोरने वाली है अपितु इस खबर ने कम्युनिस्टों द्वारा दुष्प्रचारित “जय मीम जय भीम” जैसे छलावे की बखियाँ भी उधेड़ कर रख दी है

 

लखीमपुरखीरी के निघासन थाना क्षेत्र अंतर्गत हुई इस हृदयविदारक घटना में समीप के लालपुर गांव के रहने वाले साहिल एवं जुनैद ने मृतक बहनों के पड़ोसी छोटू के माध्यम से उनसे दोस्ती का षड़यंत्र रचा था, जिसके उपरांत बुधवार दोपहर को दोनों आरोपी छोटू से मिलने उसके घर पहुंचे, मृतक बहनों की मां का कहना है कि दोपहर 2.30 के आस पास दो मोटरसाइकिल से तीन लोग उनके घर में आ घुसे और हाथापाई करते हुए उनकी दोनों बच्चीयों को अगवा कर ले गए।

इस हाथापाई में बदहवास हुई युवतियों की मां ने थोड़ी देर बाद होश संभालते हुए घटना की जानकारी गांववालो को दी जिसके उपरांत युवतियों की खोजबीन प्रारंभ की गई, लगभग पांच बजे गांववालो को दोनों ही बहनों का शव खेतों में पेड़ से लटका हुआ मिला, जिसके उपरांत पहुंची पुलिस ने शव को कब्जे में लेते हुए आगे की कार्यवाही प्रारंभ की।

घटना से आक्रोशित ग्रामीणों के बढ़ते विरोध को देखते हुए पुलिस के वरीय अधिकारी भी थाना पहुंचे जिसके उपरांत प्राथमिकी दर्ज कर रात भर चलाए गए अभियान में पुलिस ने मुख्य आरोपी सुहैल, छोटू समेत 5 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया, जबकि एक अन्य मुख्य आरोपी जुनैद को तड़के भागने के क्रम में गिरफ्तार किया गया।

प्रारंभिक जांच में सुहैल और जुनैद ने स्वीकार किया कि उन्होंने दोनों बहनों के साथ बलात्कार किया और जब इसके उपरांत दोनों बहनों ने शादी की बात की तो उनके दुपट्टे से एक एक कर दोनों का गला घोंट दिया, इस दौरान तीसरा आरोपी हाजिफुर भी उनके साथ था जबकि दोनों बहनों की हत्या के बाद आरोपियों ने आरिफ एवं करीमुद्दीन को भी घटनास्थल पर बुला लिया जिसके बाद मौत को आत्महत्या दिखाने के क्रम में सभी आरोपियों ने मिलकर उसे पेड़ से लटका दिया।

अब इस जघन्य अपराध के सामने आने के उपरांत हमेशा की तरह अपराधी की जाति देखकर राजनीति करने वाला कम्युनिस्ट एवं क्षद्म सेक्युलरवादी समूह इस मामले में अपराधियों के मुस्लिम समाज से होने को लेकर खानापूर्ति के प्रयास में जुट गए हैं, इसे ऐसे समझे कि ‘हाथरस’ की घटना पर उसे पोलिटिकल टूरिज्म का अड्डा बनाने वाला गैंग, ना केवल लखीमपुरखीरी से नदारद हैं बल्कि उनके ट्वीट्स भी बेहद नपे-तुले हैं जिनमें पीड़िता की जाती का तो बखान किया जा रहा है लेकिन अपराधियों का नहीं।

आश्चर्यजनक यह भी है कि बात बात पर हाथों में तख्तियां लेकर खड़े होने वाला बॉलीवुड एवं कम्युनिस्ट समूह का कोई भी सूरमा इस पूरे प्रकरण में शर्मिंदा दिखाई नहीं दे रहा है ना तो उसे इस बात पर लज्जा आ रही है कि वह उस भारत से आता है जहां 5 मुस्लिम लड़के दलित समुदाय से आने वाली लड़की के साथ जबरन बलात्कार कर रस्सियों से गला घोट कर उसकी हत्या कर देते हैं ना ही उसे इस बात से आपत्ति है कि देशभर में लव जिहाद जैसे संगठित अपराध के विरुद्ध कोई भी विपक्षी दल अपनी आवाज नहीं उठा रहा है

 

विडंबना यह भी है कि जिस देश में ट्रेन की सीट को लेकर हुए झगड़े में एक जुनैद की जान चली जाने पर देश के कथित बुद्धिजीवियों सहित अंतरराष्ट्रीय मीडिया को भी भारत असहिष्णु नजर आने लगता है, जबकि इसी देश में लव जिहाद जैसे संगठित अपराध में प्रतिवर्ष सैकड़ों हिंदी बेटियों की निर्मम हत्याओं पर उनकी ओर से सहानभूति का एक शब्द नहीं फूटता।

वे दुमका के अंकिता से लेकर इस जघन्य घटना में मारी गई दलित बहनों जैसी सैकड़ों हिन्दू बेटियों को चीत्कार को सामाजिक अपराध की श्रेणी में डाल कर उसका सामान्यीकरण का प्रयास करते हैं, जबकि किसी जुनैद, किसी पहलू खान की अपवाद स्वरूप हुई हत्या इन्हें भारत की अस्मिता इसकी सांस्कृतिक विरासत पर बट्टा दिखाई देने लगती है।

इससे इतर एक ढोंग जय मीम जय भीम के नाम पर भी चलाया जाता रहा है जिसकी वास्तविकता लखीमपुरखीरी समेत देश भर में हुई ऐसी सैकड़ो घटनाएं चीख-चीखकर बता रही है, जिनमें पीड़ित सदैव उसी दलित समुदाय की बेटियां है जिसके साथ राजनीतिक गठजोड़ कर कुछेक लोग वंचितों की लड़ाई लड़ने का दंभ भर रहे हैं, हैरानी इस बात की है कि जाने-अनजाने इनके इस छलावे का शिकार दलित समुदाय का एक बड़ा वर्ग हो भी चुका है।

उन्हें यह समझना होगा कि यहां बात दलितों, ब्राह्मणों अथवा किसी जाति विशेष की नहीं, लव जिहाद जैसी घृणित धार्मिक उन्मादी अवधारणा में वो बेटी जिसकी अस्मत लूट कर हत्या की जानी है वो केवल माल-ए-गनिमत है, उन उन्मादी भेड़ियों की दृष्टि में वो केवल एक काफिर है जिसके साथ कि गई बर्बरता धार्मिक आधार पर जायज है, कईयों के लिए तो जय मीम जय भीम जैसे छलावे का अंतिम उद्देश्य भी यही है, वे इसे जितना जल्दी समझे उतना ये उनके हित मे है।

आचार्य एस. के. भँवर (प्रबंध सम्पादक व ब्यूरो चीफ डभरा) गौरव दुनिया न्यूज़

 

 

 

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